Tag: Urdu Nazm
मछली की बू
बिस्तर में लेटे लेटे
उसने सोचा
"मैं मोटा होता जाता हूँ
कल मैं अपने नीले सूट को
ऑल्टर करने
दर्ज़ी के हाँ दे आऊँगा
नया सूट दो-चार महीने बाद सही!
दर्ज़ी...
ये खेल क्या है
मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है
और अब
मेरी चाल के इंतिज़ार में है
मगर मैं कब से
सफ़ेद-ख़ानों
सियाह-ख़ानों में रक्खे
काले सफ़ेद मोहरों को देखता हूँ
मैं सोचता...
अलाव
रात-भर सर्द हवा चलती रही
रात-भर हम ने अलाव तापा
मैंने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं
तुमने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े
मैंने जेबों...
मैं और तू
रोज़ जब धूप पहाड़ों से उतरने लगती
कोई घटता हुआ, बढ़ता हुआ, बेकल साया
एक दीवार से कहता कि मिरे साथ चलो
और ज़ंजीर-ए-रिफ़ाक़त से गुरेज़ाँ दीवार
अपने...
एक दोस्त की ख़ुश-मज़ाक़ी पर
"क्या तिरी नज़रों में ये रंगीनियाँ भाती नहीं
क्या हवा-ए-सर्द तेरे दिल को तड़पाती नहीं
क्या नहीं होती तुझे महसूस मुझ को सच बता
तेज़ झोंकों में हवा के गुनगुनाने की सदा..."
नई मरियम
कैसी तवाना, कैसी चंचल, कितनी शोख़ और क्या बेबाक
कैसी उमंगें, कैसी तरंगें, कितनी साफ़ और कैसी पाक
होश की बातें, शौक़ की घातें, जोश-ए-जवानी सीना-चाक
ख़ंदा...
हम देखेंगे
'Hum Dekhenge', a nazm by Faiz Ahmad Faiz
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम...
रुत
दिल का सामान उठाओ
जान को नीलाम करो
और चलो
दर्द का चाँद सर-ए-शाम निकल आएगा
क्या मुदावा है
चलो दर्द पियो
चाँद को पैमाना बनाओ
रुत की आँखों से टपकने...
प्यास
दूर से चल के आया था मैं नंगे पाँव, नंगे सर
सर में गर्द, ज़बाँ में काँटे, पाँव में छाले, होश थे गुम
इतना प्यासा था...
परछाइयाँ पकड़ने वाले
डाइरी के ये सादा वरक़
और क़लम छीन लो
आईनों की दुकानों में सब
अपने चेहरे लिए
इक बरहना तबस्सुम के मोहताज हैं
सर्द बाज़ार में
एक भी चाहने वाला...
काला सूरज
कितने रौशन आफ़्ताबों को निगल कर
काला सूरज
रौशनी के शहर में दाख़िल हुआ
सारी काली क़ुव्वतों ने
काले सूरज को उठाया दोश पर
ख़ुद सभी राहों को रौशन...
एक थी औरत
ये जी चाहता है कि तुम एक नन्ही सी लड़की हो और हम तुम्हें गोद में ले के अपनी बिठा लें
यूँ ही चीख़ो चिल्लाओ,...