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निर्मल वर्मा
कृष्णा सोबती के संस्मरण संग्रह 'हम हशमत - भाग 1' से साभार
बात पुरानी है। तब की जब निर्मल नये थे। वह पुरानी बात नयी...
दोज़ख़ी
उर्दू के बेहतरीन संस्मरणों में से एक, इस्मत चुग़ताई अपने भाई और उर्दू लेखक अज़ीमबेग चुग़ताई को याद करते हुए!
"बीवी शौहर न समझती, बच्चे बाप न समझते, बहन ने कह दिया, तुम मेरे भाई नहीं और भाई आवाज़ सुनकर नफ़रत से मुँह मोड़ लेते। माँ कहती- साँप जना था मैंने!"
"विश्वास नहीं होता कि इस क़दर सूखा-मारा इन्सान, जिसने अपनी बीवी के अलावा किसी तरफ़ आँख उठाकर न देखा, कल्पना में कितना ऐयाश बन जाता है। ओफ़्फ़ोह!"
"वो कहीं पर भी जायें, मैं देखना चाहती हूँ, क्या वहाँ भी उनकी वही कैंची-जैसी ज़बान चल रही है? क्या वहाँ भी वो हूरों से इश्क़ लड़ा रहे हैं या दोज़ख़ के फ़रिश्तों को जलाकर मुस्करा रहे हैं?"