Tag: Urdu Satire

Khwaja Hasan Nizami

प्यारी डकार

"चाहता ये हूँ कि अपने तूफ़ानी पेट के बादलों को हल्क़ में बुलाऊँ और पूरी गरज के साथ बाहर बरसाऊँ। यानी कड़ाके दार डकार लूँ। पर क्या करूँ ये नए फ़ैशन वाले मुझको ज़ोर से डकार लेने नहीं देते। कहते हैं डकार आने लगे तो होंटों को भीच लो और नाक के नथुनों से उसे चुपचाप उड़ा दो। आवाज़ से डकार लेनी बड़ी बे-तहज़ीबी है।"
humara mulk - ibne insha

हमारा मुल्क

किताब अंश: 'उर्दू की आख़िरी किताब' - इब्ने इंशा "ईरान में कौन रहता है?" "ईरान में ईरानी क़ौम रहती है।" "इंग्लिस्तान में कौन रहता है?" "इंग्लिस्तान में अंग्रेज़ी...
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