Tag: Vijay Rahi

Hawkers, Wanderers

बागरिया

शहर से दूर पटरियों के पास कीकर-बबूलों के बीच में डेरे हैं उनके यह एक सर्दियों की शाम थी जब हम मिले उनसे जीव-जिनावर लौट रहे थे...
Vijay Rahi

कविताएँ: मई 2021

महामारी में जीवन कोई ग़म नहीं मैं मारा जाऊँ अगर सड़क पर चलते-चलते ट्रक के नीचे आकर कोई ग़म नहीं गोहरा खा जाए मुझे खेत में रात को ख़ुशी की बात है अस्पताल...
Vijay Rahi

सुख-दुःख

एक घण्टे में लहसुन छीलती है फिर भी छिलके रह जाते हैं दो घण्टे में बर्तन माँजती है फिर भी गन्दगी छोड़ देती है तीन घण्टे में रोटी बनाती है फिर भी...
Vijay Rahi

एकमात्र रोटी, तुम्हारे साथ जीवन

एकमात्र रोटी पाँचवीं में पढ़ता था उमर होगी कोई दस एक साल मेरी। एक दिन स्कूल से आया बस्ता पटका, रोटी ढूँढी घर में बची एकमात्र रोटी को मेरे हाथ से...
Vijay Rahi

शहर से गुज़रते हुए प्रेम, कविता पढ़ना, बेबसी

शहर से गुज़रते हुए प्रेम मैं जब-जब शहर से गुज़रता हूँ सोचता हूँ किसने बसाए होंगे शहर? शायद गाँवों से भागे प्रेमियों ने शहर बसाए होंगे ये वो अभागे थे, जो फिर लौटना...
Vijay Rahi

स्त्रियाँ

तुम्हारे क़दमों की ताल से हिलती है धरती तुम्हारे पुरुषार्थ से थर्राता है आकाश गर तुम नहीं हिले तो नहीं हिले पत्ता भी तुम नहीं चलो तो नहीं चले...
Vijay Rahi

याद का रंग

'Yaad Ka Rang', a poem by Vijay Rahi "दुष्टता छोड़ो! होली पर तो गाँव आ जाओ!" फ़ोन पर कहा तुम्हारा एक वाक्य मुझे शहर से गाँव खींच...
Vijay Rahi

वहम

मूल कविता: 'वहम' - विजय राही अनुवाद: असना बद्र जब भी सोचा मौत के बारे में मैंने चंद चेहरे रूबरू से आ गए वो जो करते हैं मोहब्बत बे...
Vijay Rahi

देवरानी-जेठानी

'Devrani Jethani', a poem by Vijay Rahi बेजा लड़ती थीं आपस में काट-कड़ाकड़ जब नयी-नयी आयी थीं दोनों देवरानी-जेठानी। नंगई पर उतर जातीं तो बाप-दादा तक को बखेल देतीं जब लड़ धापतीं पतियों...

टाईमपास

'Timepass', a poem by Vijay Rahi दो आदमी बात कर रहे थे एक ने पूछा, आप कहाँ रहते हैं? दूसरे ने बताया… जयपुर पहले ने कहा, मैं भी...
Vijay Rahi

वहम

'Weham', a poem by Vijay Rahi मैंने जब-जब मृत्यु के बारे में सोचा कुछ चेहरे मेरे सामने आ गये जिन्हें मुझसे बेहद मुहब्बत है। हालाँकि यह मेरा एक...
Choolha

देश

'Desh', Hindi Kavita by Vijay Rahi देश एल्यूमीनियम की पुरानी घिसी एक देकची है जो पुश्तैनी घर के भाई-बँटवारे में आयी। लोकतंत्र चूल्हा है श्मशान की काली...
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