Tag: Vinod Kumar Shukla

Naukar Ki Kameez - Vinod Kumar Shukla

विनोद कुमार शुक्ल – ‘नौकर की कमीज़’

विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास 'नौकर की कमीज़' से उद्धरण | Quotes from 'Naukar Ki Kameez', a novel by Vinod Kumar Shukla चयन एवं प्रस्तुति:...
Deewar Mein Ek Khidki Rehti Thi - Vinod Kumar Shukla

विनोद कुमार शुक्ल – ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’

विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' से उद्धरण | Quotes from 'Deewar Mein Ek Khidki Rehti Thi', by Vinod...
Deewar Mein Ek Khidki Rehti Thi - Vinod Kumar Shukla

दीवार में एक खिड़की रहती थी

किताब अंश: 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' - विनोद कुमार शुक्ल विभागाध्यक्ष से रघुवर प्रसाद ने बात की, "महाविद्यालय आने में कठिनाई होती है...
Vinod Kumar Shukla

अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं

यह कविता यहाँ सुनें: https://youtu.be/pUtSK1ATCx4 अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं और पूरा आकाश देखे लेते हैं। सबके हिस्से का आकाश पूरा आकाश है। अपने हिस्से का चन्द्रमा देखते...
Vinod Kumar Shukla

वह चेतावनी है

यह चेतावनी है कि एक छोटा बच्‍चा है। यह चेतावनी है कि चार फूल खिले हैं। यह चेतावनी है कि ख़ुशी है और घड़े में भरा हुआ पानी पीने के लायक़ है, हवा में...
Vinod Kumar Shukla

बोलने में कम से कम बोलूँ

बोलने में कम से कम बोलूँ कभी बोलूँ, अधिकतम न बोलूँ इतना कम कि किसी दिन एक बात बार-बार बोलूँ जैसे कोयल की बार-बार की कूक फिर चुप। मेरे अधिकतम...
Vinod Kumar Shukla

घर संसार में घुसते ही

घर संसार में घुसते ही पहिचान बतानी होती है उसकी आहट सुन पत्‍नी-बच्‍चे पूछेंगे— 'कौन?' 'मैं हूँ'—वह कहता है तब दरवाज़ा खुलता है। घर उसका शिविर जहाँ घायल होकर वह लौटता है। रबर...
Vinod Kumar Shukla

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था व्यक्ति को मैं नहीं जानता था हताशा को जानता था इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया मैंने हाथ बढ़ाया मेरा हाथ...
Vinod Kumar Shukla

कोई अधूरा पूरा नहीं होता

कोई अधूरा पूरा नहीं होता और एक नया शुरू होकर नया अधूरा छूट जाता शुरू से इतने सारे कि गिने जाने पर भी अधूरे छूट जाते परन्तु इस असमाप्त अधूरे...
Vinod Kumar Shukla

जाते-जाते ही मिलेंगे लोग उधर के

जाते-जाते ही मिलेंगे लोग उधर के जाते-जाते जाया जा सकेगा उस पार जाकर ही वहॉं पहुँचा जा सकेगा जो बहुत दूर सम्भव है पहुँचकर सम्भव होगा जाते-जाते छूटता रहेगा पीछे जाते-जाते बचा...
Vinod Kumar Shukla

हरे पत्ते के रंग की पतरंगी और कहीं खो गया नाम का लड़का

"माँ, एक बिल्ली का बच्चा कक्षा में घुस आया। भूरी बिल्ली थी। किसी लड़के ने बस्ते में लाया होगा। कॉपी-किताब निकालने के पहले बिल्ली का बच्चा खुद बाहर निकल आया होगा। मेरी किताब में चूहे-बिल्ली का पाठ है। कहीं मेरी किताब के पाठ से तो बिल्ली का बच्चा बाहर न निकल गया हो। अब पाठ में वापस कैसे जाएगा? सबकी किताब से एक-एक कर बिल्ली के बच्चे बाहर आ जाएँ तो कक्षा में बहुत से बिल्ली के बच्चे हो जाएँगे। एक जैसे पाठ की एक जैसी बिल्ली। मैं अपनी बिल्ली कैसे पहचानूँगा? मेरे किताब की मेरी बिल्ली मुझे पहचानती होगी। मेरी किताब को भी पहचानती होगी। पहले बस्ते के अन्दर बिल्ली जाएगी। बस्ते के अन्दर से किताब के अन्दर। किताब के अन्दर से पाठ के अन्दर।" "इस चिड़िया का उड़ते हुए बोलना अनोखा लगता है। यह उड़ते-उड़ते दुगनी थक जाती होगी, उड़ते हुए और बोलने से। इसलिए दुगनी सुस्ताती होगी, बैठकर और चुप रहकर।"
Vinod Kumar Shukla

प्रेम की जगह अनिश्चित है

'Prem Ki Jagah Anishchit Hai', a poem by Vinod Kumar Shukla प्रेम की जगह अनिश्चित है यहाँ कोई नहीं होगा की जगह भी नहीं है आड़ की...
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