Tag: Vishal Singh Tabrez
अस्तित्व एक महासागर
अस्तित्व रूपी महासागर की,
हर बूँद मेरी दुश्मन है
मैं ठहरा एक गोताखोर,
कल्पना की नदियों में
गोते खाता फिरता हूँ
और मुझे यह भी पता है
हर नदी आकर...
माँ यहाँ ना आना
मैं आज भी दफ़्तर से
हारा थका लौटा हूँ
बीमार भी हूँ शायद
मैं कह चुका हूँ माँ से
के आज वो कमरे में
आएँ नहीं बिलकुल भी
चिल्ला रहा है...
पेपर वाला छोटू
'Paper Wala Chhotu', a poem by Vishal Singh
उसने अपना हक़ माँगा था,
उसको थप्पड़ फिर क्यूँ मारा
जिस पेपर वाले छोटू के
बाबा अँधे, अम्मा तारा
बस्ता सपना,...
इक कमरा
तुम तो कहती थीं छोटा-सा
ये कमरा अपनी जन्नत थी
ये भी के इसका हर ज़र्रा
ऊपर वाले की रहमत थी
इस कमरे की लगभग हर शय
चुनचुन कर...