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फ़रवरी
फ़रवरी इतना बुरा भी नहीं है!
मैं यह समझ पाने में हमेशा असमर्थ रहा कि
आदिम सभ्यताओं को इस महीने से इतनी चिढ़ क्यों थी?
रोमन सभ्यता...
प्रतीक्षा की समीक्षा
पत्र कई आए
पर जिसको आना था
वह नहीं आया,
व्यंग्य किए चली गई धूप और छाया।
सहन में फिर उतरा पीला-सा हाशिया
साधों पर पाँव धरे चला गया...
रात्रिदग्ध एकालाप
1
बारूद के कोहरे में डूब गए हैं पहाड़,
नदी, मकान, शहर के शहर।
बीवी से छिपाकर बैंक में पैसे डालने
का मतलब नहीं रह गया है
अब।
2
मुझे चुप...
कमाल का स्वप्न, नींद, प्रतीक्षारत
कमाल का स्वप्न
जीवन के विषय में पूछे जाने पर
दृढ़ता से कह सकता हूँ मैं
कमाल का स्वप्न था..
जैसा देखा, हुआ नहीं
जैसा हुआ, देखा नहीं!
नींद
कहानी सुनाकर
दादी...
अनामिका अनु की कविताएँ
मैं मारी जाऊँगी
मैं उस भीड़ के द्वारा मारी जाऊँगी
जिससे भिन्न सोचती हूँ।
भीड़-सा नहीं सोचना
भीड़ के विरुद्ध होना नहीं होता है।
ज़्यादातर भीड़ के भले के लिए...
वो सुब्ह कभी तो आएगी
वो सुब्ह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुःख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब...
लौटूँगा धरती
हर बार लौट पाने का निश्चय
कहाँ बचा पाया हूँ अब
दर्द की हवा भर पाए
उससे पहले ही
ख़यालों की नाक में एक बेचैन गुदगुदी कर
हर प्रतीक्षा को...