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Vijendra

कहाँ हो तुम

मृत्यु का भय ईश्‍वर के भय को सींचता रहता है ओ मेरे कवि प्रार्थनाएँ करते-करते सदियों के पंख झड़ चुके हैं ऋतुचक्रों पर फफूँद बैठी है ईश्‍वर ग़रीबों की तरफ़...
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