Tag: Working Class

Bhisham Sahni

साग-मीट

साग-मीट बनाना क्‍या मुश्किल काम है! आज शाम खाना यहीं खाकर जाओ, मैं तुम्‍हारे सामने बनवाऊँगी, सीख भी लेना और खा भी लेना। रुकोगी...
Kaynaat

कायनात की कविताएँ

1 इश्क़, तुम मेरी ज़िन्दगी में आओ तो यूँ आओ कि जैसे किसी पिछड़े हुए गाँव में कोई लड़की घण्टों रसोई में खपने के बाद पसीने से भीगी बाहर...
Paash

लोहा

आप लोहे की कार का आनन्द लेते हो मेरे पास लोहे की बन्दूक़ है मैंने लोहा खाया है आप लोहे की बात करते हो लोहा जब पिघलता है तो भाप नहीं...
Kedarnath Agarwal

हमारी ज़िन्दगी

हमारी ज़िन्दगी के दिन, बड़े संघर्ष के दिन हैं। हमेशा काम करते हैं, मगर कम दाम मिलते हैं। प्रतिक्षण हम बुरे शासन, बुरे शोषण से पिसते हैं। अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से वंचित...
Man holding train handle

ज़िन्दगी का लेखा

मैंने तेरी अलकों को नहीं अपनी उलझनों को सुलझाया है! अपने बच्चों को नहीं साहबज़ादों को दुलराया है! तब तुम्हें मुझसे शिकायत होना वाजिब है जब साहब को भी शिकायत...
Kedarnath Agarwal

मज़दूर का जन्म

एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ! हाथी सा बलवान, जहाज़ी हाथों वाला और हुआ! सूरज-सा इंसान, तरेरी आँखोंवाला और हुआ! एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ! माता रही विचार, अँधेरा हरनेवाला...
Labour, Labor

दिहाड़ी मज़दूर

मेरे गाँव में एक व्यक्ति के कई रूप थे वो खेतों में बोता था बादल और सबकी थालियों में फ़सल उगाता था वो शादियों में बन जाता था पनहारा, चीरता था लकड़ी मरणों...
Lockdown Migration

उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है

1 वे हमारे सामने थे और पीछे भी दाएँ थे और बाएँ भी वे हमारे हर तरफ़ थे बेहद मामूली कामों में लगे हुए बेहद मामूली लोग जो अपने...
Shiv Kushwaha

शिव कुशवाहा की कविताएँ

दुनिया लौट आएगी निःशब्दता के क्षणों ने डुबा दिया है महादेश को एक गहरी आशंका में जहाँ वीरान हो चुकी सड़कों पर सन्नाटा बुन रहा है एक भयावह परिवेश एक...
Rohit Thakur

मैं अपने मरने के सौन्दर्य को चूक गया

एक औरत मुजफ़्फ़रपुर जंक्शन के प्लेटफ़ार्म पर मरी लेटी है उसका बच्चा उसके पास खेल रहा है बच्चे की उम्र महज़ एक साल है एक औरत की गोद में...
Manbahadur Singh

बैल-व्यथा

तुम मुझे हरी चुमकार से घेरकर अपनी व्यवस्था की नाँद में जिस भाषा के भूसे की सानी डाल गए हो— एक खूँटे से बँधा हुआ अपनी नाथ को चाटता...
Poonam Sonchhatra

नौकरीपेशा औरतें

'Naukripesha Auratein', a poem by Poonam Sonchhatra काफ़ी कुछ कहा जाता है इनके बारे में उड़ने की चाह लिए पैर घुटनों तक ज़मीन में गड़ाए दोहरी ज़िंदगी जीने...
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