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साग-मीट
साग-मीट बनाना क्या मुश्किल काम है! आज शाम खाना यहीं खाकर जाओ, मैं तुम्हारे सामने बनवाऊँगी, सीख भी लेना और खा भी लेना। रुकोगी...
कायनात की कविताएँ
1
इश्क़,
तुम मेरी ज़िन्दगी में आओ तो यूँ आओ
कि जैसे किसी पिछड़े हुए गाँव में
कोई लड़की घण्टों रसोई में खपने के बाद
पसीने से भीगी बाहर...
लोहा
आप लोहे की कार का आनन्द लेते हो
मेरे पास लोहे की बन्दूक़ है
मैंने लोहा खाया है
आप लोहे की बात करते हो
लोहा जब पिघलता है
तो भाप नहीं...
हमारी ज़िन्दगी
हमारी ज़िन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं।
हमेशा काम करते हैं,
मगर कम दाम मिलते हैं।
प्रतिक्षण हम बुरे शासन,
बुरे शोषण से पिसते हैं।
अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से
वंचित...
ज़िन्दगी का लेखा
मैंने तेरी अलकों को नहीं
अपनी उलझनों को सुलझाया है!
अपने बच्चों को नहीं
साहबज़ादों को दुलराया है!
तब तुम्हें मुझसे
शिकायत होना वाजिब है
जब साहब को भी शिकायत...
मज़दूर का जन्म
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
हाथी सा बलवान,
जहाज़ी हाथों वाला और हुआ!
सूरज-सा इंसान,
तरेरी आँखोंवाला और हुआ!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
माता रही विचार,
अँधेरा हरनेवाला...
दिहाड़ी मज़दूर
मेरे गाँव में एक व्यक्ति के
कई रूप थे
वो खेतों में बोता था
बादल
और सबकी थालियों में
फ़सल उगाता था
वो शादियों में
बन जाता था पनहारा,
चीरता था लकड़ी
मरणों...
उनके तलुओं में दुनिया का मानचित्र है
1
वे हमारे सामने थे और पीछे भी
दाएँ थे और बाएँ भी
वे हमारे हर तरफ़ थे
बेहद मामूली कामों में लगे हुए बेहद मामूली लोग
जो अपने...
शिव कुशवाहा की कविताएँ
दुनिया लौट आएगी
निःशब्दता के क्षणों ने
डुबा दिया है महादेश को
एक गहरी आशंका में
जहाँ वीरान हो चुकी सड़कों पर
सन्नाटा बुन रहा है एक भयावह परिवेश
एक...
मैं अपने मरने के सौन्दर्य को चूक गया
एक औरत मुजफ़्फ़रपुर जंक्शन के प्लेटफ़ार्म पर
मरी लेटी है
उसका बच्चा उसके पास खेल रहा है
बच्चे की उम्र महज़ एक साल है
एक औरत की गोद में...
बैल-व्यथा
तुम मुझे हरी चुमकार से घेरकर
अपनी व्यवस्था की नाँद में
जिस भाषा के भूसे की सानी डाल गए हो—
एक खूँटे से बँधा हुआ
अपनी नाथ को चाटता...
नौकरीपेशा औरतें
'Naukripesha Auratein', a poem by Poonam Sonchhatra
काफ़ी कुछ कहा जाता है इनके बारे में
उड़ने की चाह लिए
पैर घुटनों तक ज़मीन में गड़ाए
दोहरी ज़िंदगी जीने...