Tag: Zeb Ghauri
हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है
हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है
सर ऊँचा करता हूँ तो सर जाता है
धूप इतनी है, बन्द हुई जाती है आँख
और पलक झपकूँ तो मंज़र...
ख़ंजर चमका, रात का सीना चाक हुआ
ख़ंजर चमका, रात का सीना चाक हुआ
जंगल-जंगल सन्नाटा सफ़्फ़ाक हुआ
ज़ख़्म लगाकर उसका भी कुछ हाथ खुला
मैं भी धोखा खाकर कुछ चालाक हुआ
मेरी ही परछाईं...
गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत
'Gehri Raat Hai', ghazal by Zeb Ghauri
गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत
घर के दर-ओ-दीवार भी हैं कमज़ोर बहुत
तेरे सामने आते हुए घबराता...