‘Tagore’, a poem by Sheoraj Singh Bechain
कबीर की सौ कविताएँ
रैदास के
शब्दों का सारा ज्ञान
संगीत की साधना
गीतांजलि का
अद्भुत अवदान
सब एक ओर
सब बेमतलब
यदि मानव
को अछूत करने पर
हुआ न व्याकुल गान।
न्याय की ओर-
गया नहीं ध्यान।
जिसके लिए
नवाजा जाता
उसे दिया अज्ञान।
वह स्वीकारोक्ति ठाकुर का
वह अनमोल बयान
कि “मैं जिन-,
अछूतों के आँगन तक नहीं जा सका,
उनके घर भीतर की बात कैसे जान पाता
बिन समझे, बिन जाने क्या कहता-क्या गाता?”
वही सत्य
वेदना वही
वही टैगोर के संगीत का सरगम है।
वह हिकारत
की बू और राहत का स्वर है
सामाजिक ज़ख़्मों
का अचूक मरहम है
बेज़ुबान की ज़ुबाँ है
बेदम का दम है
एक अछूत-भारत की
टैगोर के लिए दुआ
किस श्रद्धांजलि से कम है।
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