मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी जब पास तू नहीं होती
ख़ुद को कितना उदास पाता हूँ
गुम-से अपने हवास पाता हूँ
जाने क्या धुन समायी रहती है
इक ख़मोशी-सी छायी रहती है
दिल से भी गुफ़्तुगू नहीं होती
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन

मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी रह रह के मेरे कानों में
गूँजती है तिरी हसीं आवाज़
जैसे नादीदा कोई बजता साज़
हर सदा नागवार होती है
इन सुकूत-आश्ना तरानों में
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन

मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी शब की तवील ख़ल्वत में
तेरे औक़ात सोचता हूँ मैं
तेरी हर बात सोचता हूँ मैं
कौन-से फूल तुझ को भाते हैं
रंग क्या-क्या पसन्द आते हैं
खो-सा जाता हूँ तेरी जन्नत में
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन

मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी एहसास से नजात नहीं
सोचता हूँ तो रंज होता है
दिल को जैसे कोई डुबोता है
जिसको इतना सराहता हूँ मैं
जिसको इस दर्जा चाहता हूँ मैं
इस में तेरी-सी कोई बात नहीं
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन!

जाँ निसार अख़्तर
जाँनिसार अख्तर (18 फ़रवरी 1914 – 19 अगस्त 1976) भारत से 20 वीं सदी के एक महत्वपूर्ण उर्दू शायर, गीतकार और कवि थे। वे प्रगतिशील लेखक आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी गाने लिखे।