मुझे दर्द दो
थोड़ी तक़लीफ़ बढ़ा दो
आह्वान करो दुर्भाग्य का
तोरण पताकाएँ हटा लो
रास्ते के दीप बुझा दो
फूलों को आँसुओं के तेज़ाब से
झुलसने को कहो

दिशाओं शर संधान करो
सुराख करो अस्त्रों तुम
लक्ष्य हो आसमान के कंधे
जिन पर पैर रखकर
भाग्य लौट गया था

अँधेरों मत कहो
तमसो मा ज्योतिर्गमय
क्षितिज पर कुमकुम वल्लरियों
डूब जाओ जलधि में

सागर की अल्हड़ लहरों
मनोहर तरुशिखाओं जाओ
विदा करो रक्तिम रश्मिराशियों को

पालक द्वार खुला छोड़ दो
आने दो गर्म साँकलों से टकराकर
दूर्दिन की अभिलाषाओं को

शिराओं का रक्त
उबलकर ठण्डा पड़ गया
अब काला होने दो
इन्हें रौशनाई होना है

पीड़ा बढ़ने दो
क्योंकि मुझमें कविताएँ
तेज़ी से खत्म हो रही हैं

मुझे लिखनी है
अभी
सबसे खूबसूरत कविता!!


रजनीश

रजनीश गुरू
किस्से कहानियां और कविताएं पढ़ते-पढ़ते .. कई बार हम अनंत यात्राओं पर निकल जाते हैं .. लिखावट की तमाम अशुद्धियों के साथ मेरी कोशिश है कि दो कदम आपके साथ चल सकूं !!