‘Tawaif’, a nazm by Deepti Patel
आसान नहीं होता
बिस्तर पर चादर की तरह बिछ जाना,
बिना कोई हरकत किए
मुर्दा-सा पड़े रहना
और अपने ऊपर ओढ़ लेना
गर्म, ज़िंदा माँस का टुकड़ा।
ख़ुश्क, बेजान होठों पर नील पड़ जाते हैं
साँसों पर सदियों का बोझ चढ़ जाता है
और रूह को सौ-सौ मौत मरना पड़ता है।