1
हम मृत्यु-शैय्या पर लेटे-लेटे
स्वप्न में ख़ुद को दौड़ता हुआ देख रहे हैं
और हमें लगता है हम जी रहे हैं
हम अपनी लकड़ियों में आग के लिए
इन्तज़ार जैसी किसी चीज़ को
ज़िन्दगी कहते हैं
यह शब्दकोश में रह गई एक भूल है
जिसे न बदलने को हम
कर्त्तव्य कहते हैं
दरअसल हम एक त्रुटिपूर्ण
शब्दकोश को जी रहे हैं
जिसे हर आदमी बिना देखे मान्यता दे रहा है
और हर मान्यता के साथ
वह आग किसी निरर्थक काम के लिए
आगे बढ़ रही है
और हमें लगता है हम आगे बढ़ रहे हैं
स्वप्न की प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते हुए।
2
हमें राजमहल या राजभवन की
हर परम्परा
किसी भी तंत्र के नाम पर स्वीकार नहीं है
हमें बंजर संसद की हर कुर्सी पर आपत्ति है
हमें संवैधानिक कहलाने वाले
हर आदमी पर संदेह है
हमें उस प्रत्येक वाद से आपत्ति है
जिसकी नज़र में
धर्म, अपनी कुर्सी पर सोना चढ़वाने की कला है
देश जिनके लिए अपनी टेबल पर रखी
जातिगत मतदाता सूची है
और जिनके लिए
आदमी एक कूड़ेदान है
हमें वह प्रत्येक समय संदिग्ध दिखायी देता है
जब बच्चियों को सुरक्षा देने के नाम पर
सफ़ेद कुर्ते में लिपटे हर एक निरंकुश बुत को
गनमैन दे दिया जाता है
हमें यह हवा, हवा कम
एक ज़ुल्मी फ़तवा ज़्यादा महसूस होती है
जिसका प्रवाह पेड़ काटकर बने
राजमहल से हो रहा है!
3
हस्तिनापुर की राज-सभा को
धर्म-चिह्न
और गमछे के कलर में बात करने में आनन्द क्यों न हो
परदे वाली स्कॉर्पिओ से देश घूमने पर
दुनिया नहीं दिखायी देती
सामने रखी रंगीन मूर्ति
एक काँच, एसी
और आते-जाते मेसेज
इसके सिवा कुछ नहीं दिखायी देता
स्कॉर्पिओ या मर्सिडीज़ के काफिले से
बीस की उमर में हमने अन्दर से मर्सिडीज़ न देखी
लेकिन दुनिया देखी
बिना दरवाज़े के
छः सीटर ऑटो में तेरह लोगों के साथ बैठकर
देखता हूँ
फ़ुटपाथ पर लेटी अधनंगी दुनिया
स्कूल की उम्र में
ठेला धकाते, मिट्टी में दबी हुई कील निकालते
बच्चे
प्लास्टिक कचरे की थैलियाँ लादे
नाले में स्त्री-विमर्श की थीसिस ढूँढतीं
वुमन-एम्पॉवरमेंट के बजट के काग़ज़ों से
नाले का पानी सुखाकर
कबाड़ी के आगे गिड़गिड़ाती
माँएँ
थाने में
बलात्कार के बाद बलात्कार का हुलिया बनवाती
तेरह साल की बच्ची
हर आदमी के चहरे पर वही चेहरा देखती
न्याय के चेहरे से ख़ौफ़ खाती
मैं गवाह हूँ मैंने देखा है
एक आदमी भूख से मरता
एक आदमी हत्या और लूट से
एक आदमी क़र्ज़ के बोझ से
एक आदमी धर्म की तलवार से
एक गर्मी से झुलसकर, एक सर्दी से ठिठुरकर
एक बरसात में भीगकर
और एक आदमी इसलिए मर गया कि
विज्ञान ने उसके लिए दवा बनायी, पैसे नहीं बनाए
और औरत?
मैंने देखा उसके मरने की कोई वजह नहीं है
उसका औरत होना ही वजह है
अचानक किसी रिक्शे, बस या कार से
उसकी लाश फेंक दिया जाना
अचानक किसी कोर्ट का किसी
दस बरस की बच्ची से
उसके साथ हुए बलात्कार का प्रूव्य माँग लेना
अचानक किसी पुलिया के नीचे से
किसी गुमशुदा
औरत की ख़ून सनी लाश मिल जाना
मैंने देखा यहाँ अचानक बारिश कम
औरतों की लाश ज़्यादा देखी जाती है
मैंने देखा
चार घरानों की सम्पत्ति में
लाख गुना इज़ाफ़ा हो गया
और उसके करोड़ों कामगारों का मांस व ख़ून
कम हो गया, कितना यह मापने पर रोक लगी है
मैंने देखा
महान न्यायालय को रोक लगाते
मैं देखता हूँ, सड़क से चौराहे से, घर के ऊपर से
घर के बाहर से, बस से रिक्शे से, बस्ती से
मुझे भ्रम होता है
कि मेरी आँखों को दुनिया ऐसी क्यों दिखायी दे रही है
रोटी के लिए इज़्ज़त
और इज़्ज़त के लिए ज़िन्दगी को
बीच सड़क पर रौंदती दुनिया
मुझे क्यों दिखायी दे रही है
स्पर्धा के पानी से अनेकों बार आँख धोने के बाद भी
मुझे दुनिया वैसी ही दिखायी दी
लेकिन मुझे दुनिया ऐसी दिखायी दे रही है क्योंकि
भूल से मैंने आँखें बंद नहीं की
और भूल से मैं
स्कॉर्पिओ वाले डिपार्टमेंट में पैदा नहीं हुआ
फ़ुटपाथ पर भूखी लेटी
इंद्रियों को वश में करने का उपदेश पाती
अपने बहरेपन को छिपाने के लिए
हर नग्नता को झेलती
यह दुनिया
काश कि हर देखने वाले को
वैसी ही दिखायी देती
जैसी कि वह है!!
काश कि इस दुनिया को
फ़ाइल, चश्मा, हेलीकॉप्टर, राजभवन
महँगे टीवी के बिके हुए चैनल से देखने के बजाय
आँखों से देखा जाता
काश कि अंधेपन के ख़िलाफ़
वे लोग कुछ कहते
जिनके कण्ठ में आवाज़ है
जो बिना बिके भी ज़िन्दा रह सकती है!
अशोक चक्रधर की कविता 'डैमोक्रैसी'