लकी राजीव की कहानी ‘टेलीपैथी’ | ‘Telepathy’, a story by Lucky Rajeev

“बेटा, ये पलाजो क्या होता है?” मैंने मिनी के बालों में तेल लगाते हुए पूछा!

“पलाजो नहीं पापा… प्लाज़ो… अरे वो ढीला-ढीला पैजामा जैसा, ये देखिए…” वो फ़ोन में फ़ोटो दिखाते हुए बोली।

मिनी, मेरी बिटिया, मेरी दोस्त, मेरी दुनिया… हम इधर-उधर की बातें करते, खेलते, बहस भी हो जाती…

“पापा, आप उस दिन क्या कह रहे थे, टेलिपैथी के बारे में….?”

“यही कि बकवास है बिल्कुल, ऐसा कैसे हो सकता है? मैं नहीं मानता… बिना बताए दूसरा हमारे मन की बात जान ले, वाह!…”

“अरे होता है पापा… तो लगी शर्त सौ-सौ की? आप हार गए तो रुपये देने होंगे… हैं पापा, पक्का ना…”

इतवार की शाम कुछ दोस्त सपरिवार आए हुए थे। बातें चल रही थीं। हल्की ठण्ड थी, अदरक वाली चाय की माँग होने लगी-

“अरे शारदा, चाय पिलाओ बढ़िया अदरक वाली…” मैंने पत्नी को आवाज़ दी।

हालाँकि मेरा मन कर रहा था, एक कप कॉफ़ी मिल जाए तो आनंद आ जाए… सबकी चाय आ गई, मुझे छोड़कर…

“अरे भाई, हमें नहीं मिलेगी क्या चाय?” मैं झल्ला कर बोला!

“पापा, ये लीजिए कॉफ़ी… आपको चाय से एसिडिटी होती है ना…” मिनी मुस्कुराते हुए बोली।

मैं चौंक गया, इसको कैसे पता चला?!

मिनी मेरे कान में फुसफुसाई, “टेलिपैथी होती है पापा, आप हार गए… निकालिए सौ रुपए!”

समय कैसे उड़ जाता है.. घर मेहमानों से भरा हुआ था, अगले दिन मिनी की शादी थी! मन बहुत बेचैन था। बिटिया चली जाएगी, मेरी चिड़िया मेरा आँगन छोड़ कर उड़ जाएगी। बार-बार आँखें पोंछता था, फिर भर आती थीं।

रात का खाना हो चुका था, मिनी अपने कमरे में थी, सहेलियाँ गाने गा रही थीं, उसे छेड़ रही थीं… शारदा बहुत व्यस्त थी, मैं सोने का बहाना करके अपने कमरे में आ गया। कुर्सी को देखते ही फिर मन भर आया… ऐसे ही, यहीं बैठकर बालों में तेल लगवाया करती थी… कुर्सी पर बैठे-बैठे ही पता नहीं कब आँख लग गई!

अचानक लगा कोई बग़ल में है, देखा मिनी एक कटोरी लिए खड़ी थी।

“पापा, थोड़ा सा तेल लगा दीजिए बालों में, बहुत तेज़ सिर दर्द हो रहा है…”

मेरी आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगे… आज मैं फिर बिटिया से शर्त हार गया था!

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