1

कुछ दिन पहले की बात है
आँखों के सामने का दृश्य
धूमिल होता गया
और भरभराते हुए
मेरा जिस्म लुढ़क गया

मुझे मेरे दोस्त ने सम्भाला
होश आने के बाद
उसकी बातें सुनकर
मैंने महसूस किया कि
आदमी के भार से भी ज़्यादा भारी होता है
आदमी का मन
मन का भार
आदमी को अपाहिज बना सकता है

मैं जब भी सोचता हूँ
अपनी देह के बारे में
वह मुझे नरकट-सा मालूम होता है
यह दुनिया एक बहती हुई नदी
और पनडुब्बी मेरा मन
जो शिकारी के डर से
भागता हुआ
मेरी देह की ओट में छिपता है

कमरे से बाहर निकलते समय
हद ज़िद्दी आदमी की तरह आईना देखता हूँ मैं
मेरे लिए
इस बात की तसदीक़ बहुत ज़रूरी है कि
बाहर निकलने वाला मैं
मैं हूँ
या नहीं

इन दिनों मैंने अकेलेपन को ख़ूब जिया है
ख़ुद से बातें करना इतना बुरा भी नहीं है
ख़ुद से मिल जाना यक़ीनन चौंकाता है
चौंकना अच्छा है
यह दुनिया चौंकाते रहती है
हमें इसका अनुमान होना चाहिए

एक वक़्त था
नींद नहीं आती थी
फिर मैंने नींद से बातें कीं
अब जब नींद आती है तभी सोता हूँ
ख़ूब सपने देखता हूँ—
रोता हूँ
हँसता हूँ
भागता हूँ
लड़ता हूँ
लिखता हूँ
गाता हूँ
बुद्बुदाता हूँ
पुकारता हूँ
ठहरता हूँ
और चल पड़ता हूँ

हाँ, इन दिनों सपनों में जी रहा हूँ
सपनों को जीना है अभी।

2

देख रहा हूँ
बिकी हुई सत्ता
सब-कुछ बेचने पर आमादा है
मेरा ख़्याल है
हमें सबसे पहले
ख़ुद को बचाने की ज़रूरत है

यह बचना
कई तरह का हो सकता है
कैसे बचना है
आप तय कर सकते हैं
किनसे बचना है
आप तय कर सकते हैं
क्या बचाना है
आपको तय करना है

मैं आईना बचाऊँगा
ताकि कोई भ्रम न रहे
मुझे तसल्ली चाहिए कि
मैं बचा हुआ हूँ
साबुत

मैं बचाऊँगा आईना
ताकि तानाशाहीयत के सम्मुख
हर बार
उसे मज़बूती के साथ रख सकूँ।

3

मेरा विश्वास ईश्वर के प्रति कम
लोगों के प्रति ज़्यादा है
यह ज़रूरी है कि
लोग अपने बुरे विश्वास को चुनौती दें
मैं उनसे उनका ईश्वर नहीं माँगता
न ही उनसे उनकी प्रार्थनाएँ छीन रहा हूँ
मैं बस इतना चाहता हूँ कि
उन्हें अपनी आज़ादी का ख़्याल रहे
और दूसरों की आज़ादी का भी

मैं चाहता हूँ कि
व्यावहारिकता की आड़ में
वे दूसरों की साँसों का सौदा न करें

उन्हें लहू देखकर डर लगे
हथियार देखकर घृणा हो

मैं चाहता हूँ
वे सभी आलिंगन के सुख को
अतल गहराई तक महसूस करें
और उन्हें अपने प्रिय की बाँहों में अच्छी नींद आए

हाँ, मैं फ़िक्रमंद हूँ
उनकी नींद को लेकर
मैं चाहता हूँ
उन्हें भी सपने आएँ।

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गौरव भारती
जन्म- बेगूसराय, बिहार | संप्रति- असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, मुंशी सिंह महाविद्यालय, मोतिहारी, बिहार। इन्द्रप्रस्थ भारती, मुक्तांचल, कविता बिहान, वागर्थ, परिकथा, आजकल, नया ज्ञानोदय, सदानीरा,समहुत, विभोम स्वर, कथानक आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित | ईमेल- [email protected] संपर्क- 9015326408