‘Tum’, a poem by Pallavi Mukherjee

स्त्री
कोई सड़क नहीं
जिस पर चलकर
तुम
अपने लिए
रास्ते तय करते हो
न ही कोई
वटवृक्ष
जिसकी छाया के नीचे
बैठकर
सुस्ताना चाहते हो
स्त्री को
हरसिंगार का फूल भी
न समझना
जो
रातभर खिलकर
टपक जाता है
तुम्हारी हथेली में
मसलने के लिए
स्त्री
धरती की तरह है
जो
नम रहना चाहती है
मिट्टी की तरह
ताकि
एक बीज
फूट सके

उग सके
कोई पौधा
उम्मीद का…

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