‘Tum Bin Jeena Seekh Liya Hai’, a poem by Nidhi Agarwal

हाँ,
सच है
अब मैंने तुम बिन जीना
सीख लिया है
आँखों के आँसू को आँखों में
पीना सीख लिया है

हाँ,
सच है
अब मैंने तुम बिन जीना
सीख लिया है
उधड़ी रंगहीन पैहरन को मैंने
सीना सीख लिया है

हाँ,
सच है
अब मैंने तुम बिन जीना
सीख लिया है
चुप रहना सब दिल में रखना
कुछ ना कहना सीख लिया है

हाँ,
सच है
अब मैंने तुम बिन जीना
सीख लिया है
ख़्वाबों में मेरे छा जाने पर
तुम्हें दोष न देना सीख लिया है

हाँ,
सच है
अब मैंने तुम बिन जीना
सीख लिया है
प्रीत में रीते सूने दिल ने
कोई चाह ना करना सीख लिया है

हाँ,
सच है
अब मैंने तुम बिन जीना
सीख लिया है
आँख चुराकर सच से मैंने
झूठ यह कहना सीख लिया है

हाँ,
सच है
अब मैंने तुम बिन जीना
सीख लिया है!

डॉ. निधि अग्रवाल
डॉ. निधि अग्रवाल पेशे से चिकित्सक हैं। लमही, दोआबा,मुक्तांचल, परिकथा,अभिनव इमरोज आदि साहित्यिक पत्रिकाओं व आकाशवाणी छतरपुर के आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रमों में उनकी कहानियां व कविताएँ , विगत दो वर्षों से निरन्तर प्रकाशित व प्रसारित हो रहीं हैं। प्रथम कहानी संग्रह 'फैंटम लिंब' (प्रकाशाधीन) जल्द ही पाठकों की प्रतिक्रिया हेतु उपलब्ध होगा।