क्या है गुप्त
क्या है व्यक्तिगत
जब गर्भ में बन्द बच्चा भी
इतना खुला है
इतना प्रत्यक्ष?
कोई अपनी पत्नी को पीट रहा है बेतहाशा
कहता है— मेरी औरत है
कोई अपने नौकर की नन्हीं पीठ जूते से
हुमच रहा है
कहता है— मेरा नौकर है
और कोई तानाशाह हज़ारों लोगों को
गोलियों से भून रहा है,
मुस्कराता हुआ कहता है— मेरी जनता है!
कैसा समय कि छुट्टा साँड़
गौवों की नाँद में सींग मार रहा है
और कोई बोल नहीं सकता
कैसा समय के ख़ून के छीटों से भरा सफ़ेद घोड़ा
गाँवों को रौंदता जा रहा है
और कोई रोक नहीं सकता
चुप क्यों है सारा मौहल्ला
चुप क्यों है सारी दुनिया
तुम चुप्प क्यों हो?
जहाँ कहीं दुःख में है आदमी
जहाँ कहीं मुक्ति के लिए लड़ता है आदमी
वहाँ कुछ भी नहीं है निजी
कुछ भी नहीं है गुप्त
फिर भी तुम चुप क्यों हो?
अरुण कमल की कविता 'सबसे ज़रूरी सवाल'