एक कविता कहती है—
“यथार्थ झूठ है, कल्पना सच है।”
तुम मेरी कल्पनाओं का हिस्सा हो
इसलिए सच हो।
जिस किसी दिन,
ज़िन्दगी
बेबस कर देगी मुझे
स्वीकारने को यथार्थ,
डरता हूँ
कहीं स्वीकार न लूँ
कल्पनाओं का कोरापन!
उस दिन,
तुम्हें यकीनन खो दूँगा मैं।
एक कविता कहती है—
“यथार्थ झूठ है, कल्पना सच है।”
तुम मेरी कल्पनाओं का हिस्सा हो
इसलिए सच हो।
जिस किसी दिन,
ज़िन्दगी
बेबस कर देगी मुझे
स्वीकारने को यथार्थ,
डरता हूँ
कहीं स्वीकार न लूँ
कल्पनाओं का कोरापन!
उस दिन,
तुम्हें यकीनन खो दूँगा मैं।