वो रात तब एकदम काली हो जाती है जब स्क्रीन पर
एक मैसेज फ़्लो होता है—
‘प्लीज़ अब मैसेज मत करना!’

बेबसी में डूबा वो एक आखर
सारे संसार का उजास अचानक छीन लेता है

देह में जैसे जान ही नहीं रह जाती
मशीन-सी टाइप करती उंगलियाँ एकाएक बेजान हो जाती हैं

और डबडबायी आँखें पहरों स्क्रीन को ताकती रहती हैं
मैसेज फिर फ़्लो होता है— ‘सो जाओ! हम हमेशा साथ हैं!’

आँखें अब एकदम से उबल पड़ती हैं
क्योंकि उन्हें पता है इस झूठे वाक्य का सच
वो कहीं भी साथ नहीं हैं

अन्धेरे में डूबे ऐसे चेहरों से मैं खीझकर कहती हूँ—
तुम लोग मान क्यों नहीं जाते?!

प्रेम ही करना था तो कोई प्रायोजित प्रेम कर लेते!

अभी कुलीनता आएगी और कीचड़ लेकर तुम्हारे मुँह पोत देगी
सभ्यताएँ क्रूर अट्टहास करेंगीं

परम्परा ताली पीटकर दो आत्माओं की हत्या का जश्न मनाएगी
संसार के सारे चोर चरित्रवान इकट्ठा होकर गालियों की ऋचाएँ पढ़ेंगे

बाज़ार की भीड़ में कहीं बैठकर निरगुन गाता कबीर
लाठी मारकर उठा दिया जाएगा कि प्रेम का बखान करके स्साला धर्म का घोर अपमान कर रहा है

रूमी, मीर, ग़ालिब, कबीर की दुर्दशा देखकर ख़ुद ही चुप हो जाएँगे
प्रमुख पशुता अपनी विजय पर लहालोट होकर नारा लगाएगी कि धर्म की रक्षा कौन करेगा?

सारे गीदड़ हूटिंग करगें— हम करगें! हम करेंगे!

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