तुम मुझे ढूँढते रहे
और मैं तुम्हें
इस छुपन-छुपाई में
हम ये ही भूल गए
हम किसे ढूँढ रहे थे
एक बार हम रास्ते में मिले थे
लेकिन तुमने मुझे नहीं पहचाना
मैं भी भूल गई कि मैं तुमको ही तो तलाश कर रही थी
हम तलाश के एक ही दाएरे में घूमते रहे
सारी ज़िन्दगी गुज़र गई
तुमको याद हो
शायद नहीं
हम एक कैफ़े में भी मिले थे
और एक सड़क पर और एक कमरे में
और एक घर में
और वहाँ, जहाँ मैं थक गई थी
तुम को ढूँढते-ढूँढते
इतनी… इतनी कि मेरी साँस फूलने लगी
हाँ वहीं मैंने इरादा तर्क कर दिया
तुम्हें ढूँढने का…
अज़रा अब्बास की नज़्म 'हाथ खोल दिए जाएँ'