कुछ काठ सुलगता जलता रहे
तुम पास मेरे जब बैठी हो
वो शाम सरकती चले मंद
तुम पास मेरे जब बैठी हो

हो खिली चाँदनी धवल-धवल
और रात चाँदनी की ख़ुशबू
पैरों पर औस के क़तरे हों
तुम पास मेरे जब बैठी हो

हो झील किनारा सीला-सा
जुगनू दमकते फिरें निकट
आँखों में आँखें रहें मगन
तुम पास मेरे जब बैठी हो

कहीं दूर से आए स्वरलहरी
घुँघरू की तेरह ताली की
सारंगी मांड कोई छेड़े
तुम पास मेरे जब बैठी हो!