‘Tum Udna Mat Chhorna’, a poem by Chandra Phulaar

मेरी बच्ची!

मैं तुम्हें सिर्फ़ ‘परी कथाएँ’ सुनाना चाहती थी
लेकिन समय की माँग थी
कि मैं तुम्हें ‘प्रेत कथाएँ’ सुनाऊँ!

मैं तुम्हें दिखाना चाहती थी
नाचती-खिलखिलाती तितलियाँ,
पर मुझे दिखाना पड़ा तुम्हें
कि कैसे कुछ शैतान
तोड़ देते हैं इन तितलियों के पंख!

मैं तुम्हें सुंदर रंगों से मिलाना चाहती थी
लाल, गुलाबी, नीले, पीले और सुनहरे
पर उससे पहले मुझे तुम्हें
काले रंग से मिलाना था
जो सब रंगों को ढक देता था!

जब मैं चाहती थी कि तुमसे कहूँ
कि तुम्हारे ‘मन’ का ख़्याल रखने
और उसे ख़ुश रखने से ज़्यादा महत्वपूर्ण
कुछ नहीं तुम्हारे लिए,
ठीक उसी वक़्त मुझसे कहा गया कि
मैं तुम्हें तुम्हारे शरीर का ख़्याल रखना
और सलीक़े से कपड़े सम्भालना सिखाऊँ!

मैं जानती हूँ कि
अब बच्चियाँ सिर्फ़
पाली नहीं जानी चाहिए
तैयार की जानी चाहिए,
समाज की कुरूपता से
लड़ने हेतु,
और मैं तैयार करूँगी तुम्हें!

बताऊँगी कि कैसे
कहानी के अंत में
परी दैत्य से जीत जाती है

सिखाऊँगी कि कैसे
स्वयं पर इतने पक्के रंग चढ़ाने हैं तुम्हें
जिन पर काला रंग भी न चढ़ सके

बताऊँगी कि कुछ भी हो जाए
तितलियाँ उड़ना बंद नहीं करतीं
कभी नहीं!

यह भी कहूँगी कि
तुम्हारे ‘शरीर’ से भी
बहुत ज़्यादा संजोया जाना चाहिए
तुम्हारे मन को!

और यह भी
कि हर पुरुष ‘दैत्य’ नहीं होता
इसलिए तुम प्रेम करना मत छोड़ना!
तुम उड़ना मत छोड़ना
कभी नहीं…!

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