जब तुम थे
तुम्हारे साथ समय का
हर क्षण
एक पूरा युग निर्मित
करता था,
जेठ की दुपहरी भी लगती थी
सावन की फुहारों-सी,
प्रेम का
हर अक्षर उभरता था
कई-कई आकाशगंगायें बनकर,
तुम्हारे बाद मैंने जाना
कि युग बीतता है
और तपती रेत से
पड़ते हैं पावों में छाले भी,
अब प्रेम दिखता है हर रात
टूटते तारे जैसा
जिससे हर शख़्स माँग लेता है
अपनी एक अधूरी मुराद!