इन्हें कैसे स्पर्श किया जाए
मेरी उँगलियों के पास
वह कला नहीं है
तुम्हारे होंठ मेरे लिए
बिल्कुल नए हैं
जैसे नई है
यह ऋतु बासन्ती,
जैसे पिछले शरद के पहले
नए थे
नीलकुरिंजी के फूल
तुम्हें चूमने के बाद से ही
मैं नव्यता से ओतप्रोत हूँ
मेरे होंठ
बार-बार रस्ता भटक जाते हैं,
तुम्हारे दाँत
साबित कर देते हैं
उन पर अपना प्रभुत्व
और वो बेचारे
सकुचा कर
कर देते हैं समर्पण
कि जैसे उन्हें यही आता हो
तुम्हारे होंठ मेरे लिए नए हैं
हर नई शय
मुझे तुम तक खींच लाती है,
हर नई शय
जिज्ञासा को जन्म देती है,
जिज्ञासा खोज को…
जैसे धरती वाले मंगल पर
जीवन खोज रहे हैं
मेरी जिह्वा तुम्हारे होंठों के पार,
मुख के भीतर
अपने लिए
सिर्फ अपने लिए
जीवन खोजती है
~कुशाग्र अद्वैत
22/02/2019