‘Tumhare Jane Ke Baad’, a poem by Abhishek Ramashankar

सूख जाएँगे पेड़, कबूतरों को विस्मरण हो जायेगा ज्ञान दिशाओं का, संसार के सारे जल स्रोत बन जाएँगे मृग मरीचिका, जितनी है रेत उतना ही बचेगा पानी, ना बचेगा पत्थर, ना बचेगा फूल, ना माटी – ना धूल!

क्या होगा इस संसार का तुम्हारे बिना?

जैसे नायिका की नाभि का चक्कर काटता हुआ लट्टू खोकर अपना नियंत्रण लुढ़क जाता है नीचे, उसी तरह अपनी धुरी छोड़ देगी ये पृथ्वी और जा गिरेगी ब्लैकहोल में।

क्या होगा मेरा अकेले तुम्हारे बिना?

मैं तुम्हें ढूँढता हुआ बनकर रह जाऊँगा संसार का पहला ब्लैकहोल यात्री।

तुम्हारे जाने के बाद…

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