बीत गया वो सिखा गया,
सपने सदमें दिखा गया.
युग बीते सदियाँ बीतीं,
बेवक्त वक्त में समा गया.
लम्हों नें तारीख़ें लिख्खीं,
वो दर्ज हुआ ये मिटा गया.
पके हुये कुछ ख्वाब दिये,
कच्ची नींदों से जगा गया.
जब ढला दिसंबर जाड़ों का,
यादों का उपवन उगा गया.
वो जवाँ मगर अठारह था,
होश जोश का दिला गया.
लो साल नया उन्नीस हमारा,
सदी इक्कीस का आ गया.
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© मनोज मीक