हवाएँ उड़ानों का उन्‍वान हैं
या लम्‍बी समुद्र-यात्राओं का

पत्तियाँ
पतझड़ ही नहीं
वसन्‍त का भी उन्‍वान हैं

जैसे गाढ़ा-भूरा बादल वर्षा का

अंधकार उन्‍वान है
चमकीली पन्नियों में लिपटे हमारे समय का
गो‍कि उसे रोज़ दिखा-पढ़ाकर
ठण्‍डा किया जाता है क्रोध को
जो ख़ुद एक अमूर्त महानता का सक्षम उन्‍वान है
एक अद्भुत प्रतीक्षा में

सम्‍भलकर हाथ लगाना होता है
आग के उन्‍वान को
वरना वह लील सकता है पूरे पन्‍ने को
जो या तो कोरा है
या हाशियों तक
उलट-पुलट भरा है

और हाथ!
वह तो आदमी का ऐसा उन्‍वान है
जो जहाँ रहे
अपनी हस्‍ती को झलकाता है अलग ही
उसके ही नीचे
नतशिर रह आयी हैं
पूरी सभ्यताएँ
और
आगे भी रहेंगी।

वीरेन डंगवाल की कविता 'प्रेम कविता'

Book by Viren Dangwal:

वीरेन डंगवाल
वीरेन डंगवाल (५ अगस्त १९४७ - २८ सितंबर २०१५) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि थे। बाईस साल की उम्र में उन्होनें पहली रचना, एक कविता, लिखी और फिर देश की तमाम स्तरीय साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लगातार छपते रहे। उन्होनें १९७०-७५ के बीच ही हिन्दी जगत में खासी शोहरत हासिल कर ली थी। विश्व-कविता से उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत के अपनी विशिष्ट शैली में कुछ दुर्लभ अनुवाद भी किए हैं। उनकी ख़ुद की कविताओं का भाषान्तर बाँग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, मलयालम और उड़िया जैसी भाषाओं में प्रकाशित हुआ है।