‘Upasthiti Anupasthiti’, a poem by Manjula Bist
गम्भीर व आत्मीय चर्चाओं में
उस वर्जित नाम का ज़िक्र आता रहा
जिसका प्रवेश जीवन-वृत्त में निषेध घोषित था
वांछित व अवांछित विदाई के बाद
रिक्त हुई जगह में
किसी के रहने का भान
उसके नहीं रहने में ज़्यादा होता रहा
साँसों की लय में
साँस छोड़ना
सदैव लेने से ज़्यादा महत्त्व रखती है।
कोई भी मृत्यु किसी एक क्षण में
मात्र… एक श्वास लेना भूल जाना ही तो था!
अनुपस्थिति,
एक तरह की अनिवार्य उपस्थिति होती है
अवांछित भी…!