‘Us Vyakti Ko Chunana’, a poem by Rahul Boyal
तुम्हें कोई पूछता है क्या
कि तुम कब आओगी?
सिवा मेरे कोई और है क्या
जो फ़िक्र करता है
कि तुम कब तक ठहरोगी?
अन्तरिक्ष की सैर का स्वप्न पालने वाले लोग
बहुत अधिक हैं धरती पर
ऐसे स्वप्न से पहले अपने पैराशूट को भूल जाने वाले
और भी अधिक
हवा के इंतज़ाम को याद रखने वाले तो नगण्य।
तुम्हें कोई बताता है क्या
तारों की भीड़ में चाँद क्या सोचता है?
मेरे सिवा कोई और है क्या
जो तुम्हारे लिए शून्यता के दौर में भी
गर्वीली कहकशां लिए फिरता है?
मैं तुम्हारे बारे में सोचते हुए अपनी नसों में
तुम्हारी साँसो का दबाव महसूस करता हूँ
और अपने अख़लाक़ को और मज़बूत करने के
नये-नये तरीक़े खोजता हूँ।
तुम्हारे साथ जो समय फूल सा कोमल होता है
वह प्रतीक्षा में सूई बन जाता है
तुमको यह जानकर और भी हैरानी होगी
कि इस सूई में सुराख़ नहीं होता
बस दोनों ओर नोंक होती है।
लौट आने के सम्बन्ध में तुम्हारे पास
कोई तसल्लीबख़्श जवाब नहीं होता
और मेरे पास सवालों से घिरे होने के इतर
दिनभर कोई काम नहीं होता
ये दुनिया बहुत ही ज़्यादा सलीकेदार है
और हज़ारों-लाखों सलाहों से भरी हुई है
कदम दर कदम तुम्हें विकल्प मिलेंगे
मगर फिर भी तुम उस व्यक्ति को चुनना
जो आत्मा की तमाम चुभनों को भूलकर
तुम्हारे दु:ख-दंश शहद की तरह पीता हो।
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