मेरी भाषा मेरी माँ की तरह ही
मुझसे अनजान है
वह मेरा नाम नहीं जानती
उसके शब्दकोश से मैं ग़ायब हूँ
मेरे नाम के अभाव से,
परेशान
वह बिलकुल माँ की तरह
मुझे गालियाँ देकर पुकारती है

मेरी भाषा भी माँ की तरह अधमरी है
उसने अपना अस्तित्व वर्षों पहले खो दिया
अब उसकी हर परिभाषा मुझसे जुड़ी है
मेरा हर ऐब, मेरी हर कमी उसकी है

माँ की तरह ही उसका बस हाड़-पिंजर बाक़ी है
माँ की ही तरह वह लिखना तर्क कर चुकी है
माँ की ही तरह उसका इतिहास कहीं दर्ज नहीं है
मैं अक्सर उसके अभावों से परेशान हो उस पर चीख़ती हूँ
ठीक उसी तरह जिस तरह माँ पर चीख़ा करती थी
ठीक माँ की ही तरह मैं इसे भी छोड़कर भाग रही हूँ
अस्तित्वहीनता से अर्थहीनता की ओर!

'मुझे ख़ौफ़ आता है फ़ासीवादी साहित्यकार होने से'

किताब सुझाव:

शिवांगी
शिवांगी मुख्य रूप से हिंदी की कवि हैं मगर अंग्रेज़ी और उर्दू में भी लिखती हैं। इसके अलावा वह भाषा और उसके इतिहास में गहरी रूचि रखती हैं।