उसने मुझे पीला रंग सिखाया

और मुझे दिखायी दिए जीवन के धूसर रंगों के बीचोबीच
रूरू दो दहकते हुए पीले सूर्यमुखी
एक से दूसरे के होने का नूर पीते हुए

मैंने देखा एक पीला पत्ता
जो ख़त्म होने से पहले पूरा हो रहा था
और ठीक अपनी आगामी याद की जगह पर
बना रहा था नए के लिए जगह

मुझे राह में कनेर के बिखरे हुए फूल दिखायी दिए
जो राह मुझे ले चली अपनी नानी के दुआर पर
जहाँ कनेर के पेड़ पर चढ़कर उतार लाता था मैं
डलिया-भर फूल रोज़ सुबह
नानी के ठाकुर जी के लिए

मैंने दिन के पीले विदा लेते उजाले में देखा
सूरज शाम का माथा चूमकर उसे गुलाबी करता हुआ

मुझे हर हरी चीज़ के नीले में
ख़ुशियों का पीला दिखायी दिया
जैसे मिलन का हरा इंतज़ार
मेरे नीले एकांत में पीली हल्दी लगे न्योते-सा
सुन्दर और शुभ के मिलन का मुहूर्त!

उसने मुझे सिखाया
कि पीला रंग होता है ख़ुशियों का
उस दिन
पीली चोंच वाली चिड़िया ने कोई गीत गाया
पीली फ़्रॉक वाली लड़की ने झिझक छोड़ी
सुबह की पीली धूप में तर हुआ
वह कोना जहाँ किसी का होना खिलखिलाता था

उसने मुझे अपनी ख़ुशियों का रंग सिखाया
मैंने सौंप दिए उसे अपने सारे वसंत।

रोहित ठाकुर की कविता 'एक पीला पत्ता गिरता है'

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