जीने का हक़ सामराज ने छीन लिया
उट्ठो, मरने का हक़ इस्तेमाल करो!
ज़िल्लत के जीने से मरना बेहतर है
मिट जाओ या क़स्र-ए-सितम पामाल करो!
सामराज के दोस्त हमारे दुश्मन हैं
इन्हीं से आँसू-आहें आँगन-आँगन हैं
इन्हीं से क़त्ल-ए-आम हुआ आशाओं का
इन्हीं से वीराँ उम्मीदों का गुलशन है
भूख-नंग सब देन इन्हीं की है लोगो
भूलके भी मत इनसे अर्ज़-ए-हाल करो!
जीने का हक़ सामराज ने छीन लिया
उट्ठो, मरने का हक़ इस्तेमाल करो!
सुब्ह-ओ-शाम फ़िलिस्तीं में ख़ूँ बहता है
साया-ए-मर्ग में कबसे इंसाँ रहता है
बंद करो ये बावर्दी ग़ुंडा-गर्दी
बात ये अब तो एक ज़माना कहता है
ज़ुल्म के होते अम्न कहाँ मुमकिन यारो
इसे मिटाकर जग में अम्न बहाल करो!
जीने का हक़ सामराज ने छीन लिया
उट्ठो, मरने का हक़ इस्तेमाल करो!