दुनिया के कई हिस्सों में
बनाए गए हैं नियम—
निर्गत करने को विशेषाधिकार।
निर्धारित हैं चंद कसौटियाँ
जिनसे आँका जा सकता है फ़र्क़।
शताब्दियों की ये क़वायदें
समाजीकरण की नहीं निशानियाँ,
वरन् विभेद हैं
मनुष्य और दूसरे मनुष्यों के बीच का।

अतीत के गवाक्षों से दाख़िल होती प्रेतात्माएँ
सुना रही हैं आपबीती;
कि ‘अहम्ब्रह्मास्मि’ और ‘तत्त्वमसि’
का उच्चरण करते
हमने बना डाले
वर्गीकरण के नये साँचे।
अपने को खंडित करने की आत्ममुग्धता
कई रूपों में आयी सामने!

आकार-प्रकार,
क़द-काठी,
रूप-रंग,
सभी ने निभायी अपनी भूमिका!
कुछ ने चुनी मान्यताएँ
तो औरों ने गढ़ डाले—
जन्मना श्रेष्ठता के सिद्धांत।
काले-गोरे,
धर्म-विधर्म,
जात-विजात,
शोषित-शासक..
क्रमशः दुनिया की सभी सभ्यताओं ने
आविष्कृत किए
भेदकरी छन्नापत्र।
अंततः,
ग्रंथों में संदर्भित हुईं
ऊँच-नीच,बड़े-छोटे की परिभाषाएँ।

इतिहास की क़लम डूबी जाती है
शोणितों की स्याही में,
कि हर बार
आत्मोत्सर्ग को उद्यत हुए हैं हम
अहम-पोषक-तत्वों के रक्षार्थ।
हर दफ़ा
अर्पित की जाती रही है एक जीवित देह
यज्ञाग्नि की समिधा-सम..
बनाए रखने को मूर्तिमान
अपनी ही विगलित परम्पराएँ।
प्रत्येक बँटवारे पर ज़ार-ज़ार रोती है
इंसानियत की रूह.,
कि अदृश्य रेखाओं के अग्नि-द्वार
युगों बाद ही खुल पाते हैं।

बीते कालखंडों में
कई बार
गुज़र चुकी पैदल सेनाओं के पीछ—
बेपर्दा हुई है संस्कृतियों की लाज।
महल-टूटे-खंडहरों में क़ैद
कराहती रही है
मानव-मुक्ति की आकाँक्षा।
युद्धपथोन्मुखी उजास के ग़ुबार से
धूल-धूसरित हो,
भरमा गया है हमारा वर्तमान
और दिग्भ्रमित हैं
भविष्य के स्वप्नद्रष्टा।

सशंकित वे भी हैं
जिनकी कल्पना में
मानव के ‘होने’ से लेकर उसका ‘बनना’
एक सतत विकास प्रक्रिया है;
कि नहीं देखे हमने कभी
पशुओं में वर्गभेद।
पर मेरे ख़याल में
नृतत्वशास्त्रियों को करना चाहिए
थोड़ा इत्मीनान—
अपने क्रमागत-उन्नति-सिद्धांतों पर
संदेह के बनिस्बत,
क्योंकि मनुष्य का मनुष्येतर होते जाना—
उसकी नियत नहीं,
उसका अपना चुनाव है।

अंकित कुमार भगत
Completed secondary education from Netarhat Vidyalaya and secured state 3rd rank in 10th board,currently persuing B.A. in Hindi literature from IGNOU. Interested in literature,art works like painting and scketching and occasionally play mouth organ..