‘Vastu, Swapn Aur Prem’, Hindi Kavita by Rahul Boyal

अपने घर का दरवाज़ा पूरब की ओर खुलता है
मुझे सूरज इसी दरवाज़े पर मिलता है रोज़
जब तुम्हारी प्रतीक्षा में
खड़ा मिलता हूँ मैं यहीं; अपने पड़ोसी को।
यूँ तो शुभ है पूरब में द्वार होना
पर कहते हैं क़र्ज़ में डूबा रहता है आदमी
तुम इसी द्वार से करो गृह-प्रवेश
इतना प्रेम करो कि जीवन कभी उऋण होने न पाये
और वास्तु की सत्यता स्वयं ही सिद्ध हो जाये।

बाघ-बाघिन का प्रेमातुर जोड़ा
बहुत तीव्र दौड़ता हुआ घोड़ा
नीलगाय, नेवला, चिड़िया, गाय का बछड़ा
जाने क्या-क्या देखता हूँ
द्वार खुला हुआ देखता हूँ
घास के मैदान देखते हुए
नदी का पानी पी रहा हूँ
तुम्हारे लिए रक्तपुष्प की खोज में निकलता हूँ
और सफ़ेद साँप द्वारा काट लिया जाता हूँ
ये कैसे स्वप्न हैं कि पुल पर चल रहा हूँ
और पानी में डूब रहा हूँ
इतना प्रेम करो कि कुछ भी अशुभ होने न पाये
और स्वप्नों की वैज्ञानिकता स्वयं ही सिद्ध हो जाये!

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राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]