पहले
मैं तुम्हें बताऊँगा अपनी देह का प्रत्येक मर्मस्थल
फिर मैं अपने दहन की आग पर तपाकर
तैयार करूँगा एक धारदार चमकीली कटार
जो मैं तुम्हें दूँगा—
फिर मैं
अपने दक्ष हाथों से तुम्हें दिखाऊँगा
करना वह कुशल, निष्कम्प, अचूक वार
जो मर्म को बेध जाए—
मुझे आह भरने तो क्या
गिरने का भी अवसर न दे—
मैं वह भी न कह पाऊँ
जो कहने की यह भूमिका है—
अवाक् खड़ा रह जाऊँ
जब तक कोई मुझे
भूमिसात् न कर दे।
नहीं तो और क्या है प्यार
सिवा यों अपनी ही हार का अमोघ दाँव किसी को सिखाने के—
किसी के आगे
चरम रूप से वेध्य हो जाने के?
अज्ञेय की कविता 'मैंने पूछा क्या कर रही हो'