दुख में कितना आकर्षण है!
ये जानता है एक चित्रकार,
उठाता है जब वो रंग
रंग देता है गरीबी, भूखमरी
कंकाल देह, तरसते नयन।

दुख में गजब का सम्मोहन है!
ये जानता है वो कहानीकार
जो रचता है अपनी कथाओं में
रोते, तड़पते हुए बच्चे का बचपन,
बिछड़ते हुए लोगों का वो आखिरी आलिंगन,
स्वल्प भोजन के हकदार वो बड़े-बड़े परिवार
और भूखे पेट सो जाने का वर्णन।

हाँ, सुख के पास वो वशीकरण नहीं
जो खींच सके इस तरह किसी भी हृदय को,
रहती सबको ही है सुख की दरकार
पर वो दुख ही है जो छू लेता है
हृदय के हर तार।
तभी तो करुणा में लिपटी हुई तस्वीरें,
बिकती हैं ऊँची कीमत पर
सच! दुख में गजब का आकर्षण है।

अनुपमा मिश्रा
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