धर्म देश से बड़ा हुआ है
उंगली बनकर खड़ा हुआ है
जितना बाहर से उम्दा दिखता
अंदर उतना सड़ा हुआ है।

लाठी सहारे चलने वाला
खुली सड़क पर पड़ा हुआ है
लोलुप कीड़ा सत्ता का
कुर्सी में ही गड़ा हुआ है।

जितनी कमर में लचक पड़ी है
हृदय उतना ही कड़ा हुआ है
आडम्बर ही आडम्बर है
भरा पाप का घड़ा हुआ है।

सर कहीं पर घूम रहा है
धड़ कहीं पर पड़ा हुआ है
भूखी सोती आधी दुनिया
लाश पे हीरा जड़ा हुआ है।

जिसका जितना दिल है छोटा
वो ही उतना बड़ा हुआ है
झूठी कसमें खा-खा कर के
सबका पेट बड़ा हुआ है।

चिड़िया चील से न्याय माँगती
देखो कैसा दुखड़ा हुआ है
लेकर हाथ में गिद्ध तलवारें
जीवन बचाने खड़ा हुआ है।

बाँधे करेला शहद की पुड़िया
तितली बदन अकड़ा हुआ है
पराग ले गया जौंक चूस के
भौंरा ख़ून पर पड़ा हुआ है।

नीम पर चढ़ के घाव पुकारे
पत्ता-पत्ता झड़ा हुआ है
जितने काम थे सारे रह गये
औंधेमुँह युग पड़ा हुआ है।

आजा प्यारे! दु:ख बतियाले
जीवन शेष गर पड़ा हुआ है
वैसे भी इस नगरी में यम
कदम-कदम पर खड़ा हुआ है।

यह भी पढ़ें: राघवेंद्र शुक्ल की कविता ‘सबसे उर्वर ज़मीन’

Author’s Books:

राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]