शब्द, जब अपने ही मन की बात
नहीं कहे पाते
और उनके बीच के रिक्त स्थान
उनके मन की अनुगुंजन
नहीं सुन पाते…
तो लगता हूँ मैं
‘विराम चिह्न’
कभी पढ़ना
और देखना
उनके वक्रों को
बहुत कुछ कहते हैं…

अलप विराम ( , )
प्रतीक्षारत हैं
तुम्हारे पुनः आगमन के

अर्ध विराम ( ; )
कथानक हैं कि
मतभेद ज़रूर था हमारे बीच
पर मनभेद आज भी नहीं

उपविराम ( : )
संवेदनशील हैं कि
स्मृति के आलिंगन से
जिज्ञासा और बढ़ जाती है

कोष्ठक ( )
अनुवाद हैं
नए-नए प्रेम शब्दों के
जो कठिन परिश्रमों
से दुर्लभ प्रेम की खनिजों से
मिले हैं मुझे

प्रश्नवाचक ( ? )
वो प्रश्न हैं
जिनका जवाब तुम्हारे पास भी नहीं
और मेरे पास भी नहीं
या
तुम्हारे पास भी हैं और
मेरे पास भी

योजक ( – )
दर्शाते हैं कि हम
देह से नहीं
रूह से साथ हैं

अवतरण ( ” ” )
इसमें वो सारे शब्द हैं
जो मैंने रूह से कहे थे
वह सारे शब्द ‘प्रेम’ हैं

विस्मयादिबोधक ( ! )
वह सारे पल सहेजे हैं
जब तुम सजी थी
सिर्फ मेरे लिए

लोप (. . .)
सूचक हैं
हमारे अनंत, अनकहे
प्रेम के …

पूर्ण विराम ( | )
कभी नहीं लगाता
अपनी कविताओं, रचनाओं में
क्यूंकि मुझे पता हैं
मेरी कविताएं
कभी रुकेंगी नहीं…
और मैं कभी थकूंगा नहीं

क्यूंकि
मैं अपने ही मन का होंसला हूँ…