जो घटना समझ नहीं आयी, उसे हमने ईश्वर माना
और उनसे ईश्वर रचे जो समझ के अधीन हुईं।
उसने वर्षा, हवा, पेड़ों में शक्ल पायी,
और सीधे सम्बन्ध बनाए हमारे पुरखों से।
जैसे पानी, हवा, राज्य के राजस्व पर व्यक्ति की बराबर हिस्सेदारी नहीं है,
किसी भी शक्ति-स्त्रोत पर समानाधिकार सम्भव नहीं,
यह व्याप्त शक्ति-बुद्धि की अवहेलना है।
जैसे अन्न का भण्डारण खेत से दूर होता है,
ईश्वर को करायी गई प्रकृति से राजनीति की यात्रा
व्यवस्था की सुविधा ने उसे ग्रन्थों में सरकाया
बनाया राजा के मुकुट का पंख
धर्म मध्यस्थ हुआ, और ईश्वर सर्वव्यापक
डर, उम्मीद, मुक्ति की कल्पनाओं में उसने घर पाया
वो शासकों के अभियान में उच्चरित था
उपस्थित था युद्धक्षेत्र में
और साक्षी था नरसंहारों का।
नयी व्यवस्था को नयी आवश्यकता के ईश्वरों की ज़रूरत होती है
वह पहाड़ों से, नदियों से विस्थापित हुआ
खेतिहरों की जमीन से, मन्त्री-परिषदों, जंगल से, दफ़्तरों के दराज़ों से ईश्वर को निकाला गया
ईश्वर एक विस्थापित प्रवासी है,
जिसे सन्धि में रहना है
परमाणु, पूँजी, विचारधारा जैसे कई ईश्वरों के साथ।
रात में जब घण्टे बजते हैं, उसके आह्वान को
ईश्वर निकल आता है देवालयों से किसी नये प्रवास पर
जैसे नहीं है वो और कहीं
वह वहाँ भी नहीं है!