यातना भार से व्याकुल वृक्ष को देखा मैंने
वोधिवृक्ष जैसी इसकी जड़ें गहरी हैं
बोधित वृक्ष पर तो फूल भी खिले
यह वृक्ष सभी ऋतुओं में झुलसा हुआ
धमनी-धमनी से फट पड़ती यातनाएँ
झर गए पत्ते महारोगी की उँगलियों जैसे।
यह तना कैसा? जिसकी डाल-डाल जकड़ी है वैसाखियों में
मृत्यु आती नहीं, इसलिए मृत्यु यातना सहता
यातना-भार से व्याकुल वृक्ष को देखा मैंने।