वह भला-सा आदमी
हमारे बीच की एक इकाई बन
कल तक हमारे साथ था।
वह चौराहे के इस ओर
मुँह में पान की गिल्लोरियाँ दबाए
चहका करता था यहाँ-वहाँ
खादी के कुरते-पाजामा में
झुर्रियों पड़े चेहरे के साथ
वह आम आदमी के दुःख-दर्द का साक्षी होता था
पैरों में चप्पलें घसीटते
वह हर महत्त्वपूर्ण विषय पर
अपना पक्ष रखता था।
वह भला आदमी।
वह भला-सा आदमी
देश की ग़रीबी व बेरोज़गारी के लिए
सच्चा हमदर्द बन
कुछ निदान सोचा करता था
फिर एक दिन ऐसा हुआ
वह भला आदमी जनतंत्री करिश्मे से
छलाँगें लगाता ऊँचाइयाँ छूने लगा
और वह भला आदमी
सरेआम ग़ायब हो गया
चौराहों, चौपालों से।
अब उसका कहना है-
बीमार की योग क्रियाएँ
भूखे की उपवास ही
उत्तम चिकित्सा है।
सच तो यह है कि
अब उसका कोई पक्ष नहीं रह गया है
आला कमान की जुम्बिश में
उसकी झुकी कमर और झुकती जा रही है
कहने को सारा जहाँ उसका है
हक़ीक़त में वह अपने घर में पराया है।
वह भला-सा आदमी
अब आम सड़क पर नहीं है।
लोगों की आदतें ख़राब हैं
आज भी उसे उन्ही गलियारों और
नुक्कड़ों पर ढूँढते हैं और
शून्य में ताकते – खड़े ही रह जाते हैं।