शाम होने पर
पक्षी लौटते हैं
पर वही नहीं जो गए थे
रात होने पर फिर से जल उठती है
दीपशिखा
पर वही नहीं जो कल बुझ गयी थी
सूखी पड़ी नदी भर जाती है
किनारों को दुलराता है जल
पर वही नहीं जो
बादल बनकर उड़ गया था
हम भी लौटेंगे
प्रेम में, कविता में, घर में,
जन्मान्तरों को पार कर
पर वही नहीं
जो यहाँ से उठकर गए थे।