कविता संग्रह ‘कहीं नहीं वहीं’ से
प्रेम वही तो नहीं रहने देगा
उसके शरीर की लय को,
उसके लावण्य की आभा को
उसके नेत्रों के क्षितिज ताकते एकान्त को?
प्रेम उसे बहुत हलके से छुएगा
जैसे हवा छूती है
उषा में जागते पलाश के फूल को
जैसे रात देर गए
चूमती हैं ओस की बूँदें
घास की हरी नोक को।
वह आश्चर्य से देखेगी
अपने बदलते हुए आस-पास को
चीज़ों की आपसी कानाफूसी
और उनके बीच दबी-छुपी हँसी को—
धीरे-धीरे तपेगी उसकी देह
सुख की हलकी आँच में—
प्रेम उसके पास आएगा
नींद की तरह, सपने की तरह
फूलों और चिड़ियों की तरह
गरमाहट-भरे संग-साथ की तरह
जाड़ों में गरम रोटी और दूध की तरह—
प्रेम वही तो नहीं छोड़ेगा
उसे।
प्रेम वही तो नहीं रहने देगा
उसके अकेलेपन को
भर देगा गुनगुनाहट और हरियाली से
अबोध रूपगर्व से—
उसे!
अशोक वाजपेयी की कविता 'प्यार करते हुए सूर्य-स्मरण'