वो खुले मैदान का आखिरी सिरा,
और उसकी दीवार पर
लिपटा हुआ वो पुराना बरगद का पेड़।
मानो अलग होने को तैयार नहीं
ठीक वैसे ही जैसे हम तुम थे
दुनिया को ऐसे ही दिखते थे
लिपटे उलझे बेझिझक।
मोहब्बत कम है शायद दुनिया में।
प्यार में मशग़ूल औरों को देखते नहीं
देखते हैं क्या?
तुमने देखा क्या किसी को
हमें देखते हुए?
नदी बीच वो आखिरी मुलाक़ात
याद है कितनी तेज़ धार थी?
मानो रोके ना रुके
जैसे तुम्हारे आँसू
उसके अगली रात वो तूफान आया,
ज़ोर हवा में वो दीवार गिर गई
पेड़ सूना हो गया
कहानी खो गई
वक़्त गुजरते देर नहीं लगती,
लगती है क्या?