कवि: जॉन गुज़लॉस्की
अनुवाद: देवेश पथ सारिया

युद्ध तुम्हें मार देगा
और ठण्डा पड़ा छोड़ देगा तुम्हें
गलियों में
या खेतों में
बमों से विध्वंस हुई इमारतों की
ईंटों की तरह

पर चिन्ता न करो
फिर शान्ति आएगी
तुम्हें दफ़ना देगी वह
और बैठ जाएगी तुम्हारे ऊपर
तुम्हारी माँ की तरह रोती हुई,
दुआ माँगती हुई
तुम्हारी वापसी की

बुदबुदाएगी
जैसे कि वह करती थी तब
जब तुम लड़के थे,
नाश्ते से पहले
धारा में अपने
मुँह-हाथ धोते थे

वह रोएगी
जब तक
ईश्वर एक चमत्कार न कर दे
और तुम उठ जाओगे
सुनहरी किरणों
और चहचहाते पक्षियों के बीच

और फिर
युद्ध लौट आएगा
और तुम्हें मार देगा।

देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।