वो जो लड़की है,
जो मेरे होने तक से अनजान है
हाँ-हाँ वही,
जो थोड़ी मुखर है,
वही, जिसे मैं अपलक देखता हूँ
क्लास में,
और,
सपनों में मान बैठता हूँ
उसको अपनाI
वही जो पीले कुर्ती में
बयार बन ,
उड़ा ले जाती है मुझे
और,
में महसूस करता हूँ
अपने मस्तिष्क का शून्य होनाI
वो मेरे जीवन में
नए रंग भरती है,
नव पल्लवित करती है,
अपने एक हंसी मात्र से
और मैं,
मूढ़ निर्जीव सा,
देखता हूँ उसका जानाI
और,
उसके जाते ही,
अनजान होना कचोटता हैI