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जब सूरज देर से उगता है
चांदनी दुपहरी तक रुकती है
तितलियों के बिछलते पंख
मिलकर साजों से बजते हैं
असंख्य मधुर तान उठती है
गुलालों से भरी हथेलियों पर
अभिलाषाओं की धूल सा
अभी अभी बिखेर आया हूँ
अबकी जो बैठो तो सोचा है
कातिक से फागुन तक की
दिवाली से होली तक की
मन भर बतकही कर लेंगे
सर्दियों के दिन पसंद हैं मुझे
यहीं कैलेंडर पर किसी दिन
किसी तारीख पर गोल घेरे में
पहली कविता लिखी थी मैंने